Friday, August 28, 2020

आँकड़े कागजों पर

 आँकड़े कागजों पर

खूब फले फूले


बुधिया की आँखों में

टिमटिम आस जली

कोल्हू का बैल बना

निचुड़ा गात खली

कर्ज़े के दैत्य दिए

खूँटी पर झूले।।

आँकड़े...


गमछे में धूल बाँध

रंग भरे  पन्ने

खेतों की मेड़ों पर

लगते हैं गन्ने

अनुदान झुनझुने से

नाच उठे लूले।।

आँकड़े...


 मतपत्र बने पूँजी

 रेवड़ी बाँट कर

फिर झोपड़ी बिलखती

क्यों रही रात भर

जय किसान ब्रह्म वाक्य

आज सभी भूले।।

आँकड़े...


अनिता सुधीर आख्या





 







11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-08-2020) को    "समय व्यतीत करने के लिए"  (चर्चा अंक-3808)    पर भी होगी। 
    --
    श्री गणेश चतुर्थी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  2. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दी।

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    1. अनिता जी हार्दिक आभार

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  3. हृदयस्पर्शी सृजन .

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  4. जी आ0 हार्दिक आभार

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  5. बेहद ही सटीक लेखन का सृजन किया है आपने। आज के राजनीतिक परिवेश में कैसे शोषण का शिकार हो रहे हैं लोग, किस तरह अपना स्व-मूल छोड़ कर छोटे उपलब्धियों मे लगे हैं लोग,.... आपकी रचना ने बखूबी इस तथ्य को उजागर किया है।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई।

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मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...