Sunday, April 11, 2021

गीतिका

तपती धरती सम जीवन में,आस लगी जलधार की।
अंतर्मन को शीतल करने,वर्षा हो अब प्यार की।।

पंचतत्त्व से बना शरीरा,काम क्रोध में लिप्त है।
मार्ग प्रदर्शक पथ दिखला दो,प्रभु से एकाकार की।।

अपनी संस्कृति मानव भूला,भूल गया संकल्प को।
पालन हो अब सदाचार का,बातें हों संस्कार की।।

श्रेस्ठ जनम मानव का मिलता,बुद्धि सदा सत्मार्ग हो।
पांच इंद्रियों को जो साधे, नींव पड़े व्यवहार की।।

ज्ञानी जन अभिमान करें जब,बढ़ा रहें संताप वो
छोड़ अहम को लक्ष्य रखें ये,सकल जगत उद्धार की।

अनिता सुधीर आख्या





14 comments:

  1. सार्थक शिक्षा देती रचना ।

    ज्ञानी जन अभिमान करें जब,बढ़ा रहें संताप वो
    छोड़ अहम को लक्ष्य रखें ये,सकल जगत उद्धार की।
    बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 11 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर भावों वाली सद्गगुणों का गुणगान करता अभिनव सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हार्दिक आभार सखी

      Delete
  4. सकल जगत उद्धार की भावनाओं के मोतियों से पोई मधुर रचना.
    अभिनंदन.

    ReplyDelete
  5. जी हार्दिक आभार आ0

    ReplyDelete

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...