Sunday, April 4, 2021

ढूँढता मुखड़ा पुराना



लुप्त चौपालें हुईं अब
गाँव ढूँढ़े नव ठिकाना 

रात गाँवों की सुहानी
खाट से दिखते सितारे
सप्त मंडल ढूँढना था
जुगनुओं के फिर सहारे
पुस्तकें तब कैद रहतीं
आम इमली था चुराना।।

खेत की माटी लपेटे
खेलता फिर बचपना था
ब्याह गुड़िया का कराना
एक गुड्डा अनबना था
आज मुखड़ा ढूँढता है
गीत अपना ही पुराना

कल्पना झूले गगन तक
चाँद पहने जब मँझोला
ठूँठ हैं अब नीम यादें
झूलता था मन हिँडोला
प्रेम के संबंध गुमसुम
ढूँढता फिर से तराना।।

अनिता सुधीर आख्या




























18 comments:

  1. बचपन की गलियों की सैर बड़ी भली लगती है । सुंदर प्रस्तुति ।

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    1. जी सही कहा
      हार्दिक आभार

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  2. बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  3. आपकी लिखी कोई रचना  सोमवार 5 अप्रैल 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार

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  4. खेत की माटी लपेटे
    खेलता फिर बचपना था
    ब्याह गुड़िया का कराना
    एक गुड्डा अनबना था
    आज मुखड़ा ढूँढता है
    गीत अपना ही पुराना
    बहुत खूब। बचपन की याद दिलाती सलोनी सी रचना।

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    1. आप की स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार

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  5. बहुत सुंदर सरल और सहज प्रवाहित सृजन।
    सादर।

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    1. आप की स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार

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  6. रात गाँवों की सुहानी
    खाट से दिखते सितारे
    सप्त मंडल ढूँढना था
    जुगनुओं के फिर सहारे
    पुस्तकें तब कैद रहतीं
    आम इमली था चुराना।।

    खेत की माटी लपेटे
    खेलता फिर बचपना था
    ब्याह गुड़िया का कराना
    एक गुड्डा अनबना था
    आज मुखड़ा ढूँढता है
    गीत अपना ही पुराना

    कल्पना झूले गगन तक
    चाँद पहने जब मँझोला
    ठूँठ हैं अब नीम यादें
    झूलता था मन हिँडोला
    प्रेम के संबंध गुमसुम
    ढूँढता फिर से तराना।।..अनीता जी आपकी पूरी रचना बिलकुल मन के करीब लगी,इस सुंदर और हकीकत से परिपूर्ण रचना के लिए आपको बधाई ।

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    1. आप की स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार

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  7. वाह शानदार रचना

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    1. आप की स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार

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  8. कल्पना झूले गगन तक
    चाँद पहने जब मँझोला
    ठूँठ हैं अब नीम यादें
    झूलता था मन हिँडोला
    प्रेम के संबंध गुमसुम
    ढूँढता फिर से तराना।।
    यादों के आंगन में जीवन के सुनहरे पल ढूंढती रचना। बधाई और शुभकामनाएं अनीता जी🙏🙏

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    1. आप की स्नेहिल प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार

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  9. समय की नब्ज टटोलता
    बहुत सुदर गीत
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
    आभार

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संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...