सवैया
राग-विराग सुभाव लिए ,दृग लाज भरे वृषभानु सुता।
मोहन साज सँवार करें, वह भूल गए अपनी नृपता।।
प्रीत भरें वह कुंज गली,निखरी तब कृष्ण सखा पृथुता ।
दिव्य अलौकिक दृश्य लिए,हिय में बसती प्रभु की प्रभुता।।
अनिता सुधीर आख्या
सहकर सबके पाप को,पृथ्वी आज उदास। देती वह चेतावनी,पारा चढ़े पचास।। अपने हित को साधते,वक्ष धरा का चीर। पले बढ़े जिस गोद में,उसको देते पीर।। दू...
इनकी मात्रा कितनी है व क्या नियम है कृपया अवगत करे।सीखने का अवसर मिलेगा।
ReplyDelete121 121 121 121, 121 121 121 122
ReplyDeleteये वर्णिक छन्द है
वाम सवैया की मापनी है।12,12 पर यति
आप का हार्दिक आभार
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०८ -२०२२ ) को 'भूख'(चर्चा अंक -४५३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर आभार
Deleteवाह वाह
ReplyDelete💐💐
Deleteवाह!!!!
ReplyDeleteलाजवाब👌👌
जी सादर आभार
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