गीत
तन पिंजर
तन पिंजर में कैद पड़ा है,लगता जीवन खारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
तप्त धरा पर बरसों भटके,प्रेम गठरिया हल्की।
रूठ चाँदनी छिटक गयी है,प्रीत गगरिया छलकी।।
इस पनघट पर घट है रीता,भटके मन बंजारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
ओढ़ प्रीत की चादर ढूँढूँ,तेरा रूप सलोना।
ब्याह रचा कर कबसे बैठी,चाहूँ मन का गौना ।।
चेतन मन निष्प्राण हुआ अब,माँगे एक किनारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
बाह्य जगत के कोलाहल को,अब विस्मृत कर जाऊँ।
चातक मन की प्यास बुझाने,बूँद स्वाति की पाऊँ।।
तेरे आलिंगन में चाहूँ,बीते जीवन सारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
अनिता सुधीर आख्या
उत्कृष्ट काव्य-रचना, निस्संदेह।
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद
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