Wednesday, October 20, 2021

पनिहारिन


 

पनिहारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


धरा तरसती अब बूँदों को

हुआ वक्ष उसका खाली 

जीव जगत तब व्याकुल रोया 

कहाँ गया उसका माली

तपी दुपहरी कूप खोदते 

आज कागजों में चारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


जूठे वासन आँगन देखें 

सास देखती अब चूल्हा

रिक्त पतीली बाट जोहती 

कौन पकाएगा सेल्हा 

तपिश सूर्य  से दग्ध हुई वो 

ज्येष्ठ धूप में बंजारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


नुपुर चरण को जब तब छेड़े

पाँव बचाते पत्थर तब

भरी गगरिया छलक रही जो 

बहा परिश्रम झर झर तब

नीर उमड़ता जो नयनों  से 

कहे कहानी कुल तारन

लिए भार मटकी का चलती 

कोस अढ़ाई पनिहारन


अनिता सुधीर आख्या


33 comments:

  1. पनिहारन की व्यथा। मार्मिक

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  2. अच्छा वर्णन किया है।👍

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  3. हार्दिक आभार आ0

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  4. मार्मिक चित्रण। हार्दिक बधाई 🙏

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 21 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  6. वाह। बहुत सुंदर रचना सखी अनीता जी।

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    1. धन्यवाद सखि सुजाता जी

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  7. बहुत ही सुन्दर

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  8. भावपूर्ण सुंदर चित्रण

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  9. मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति । अति सुन्दर सृजन ।

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  10. एक पनिहारिन के जीवन शैली का बहुत सुंदर चित्रण 👏👏👏🌹🌹

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  11. बहुत बहुत आभार सरोज जी

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  12. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति

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  13. अत्यंत भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी रचना 💐🙏🏼

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  14. जी हार्दिक आभार

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  15. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

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  16. अत्यंत हृदयस्पर्शी🙏🙏

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  17. नुपुर चरण को जब तब छेड़े
    पाँव बचाते पत्थर तब
    भरी गगरिया छलक रही जो
    बहा परिश्रम झर झर तब
    नीर उमड़ता जो नयनों से
    कहे कहानी कुल तारन
    लिए भार मटकी का चलती
    कोस अढ़ाई पनिहारन
    बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी चित्रण

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  18. वाह!!!!
    लाजवाब नवगीत अद्भुत बिम्ब एवं प्रतिमानसे सजा बहुत ही भावपूर्ण एवं उत्कृष्ट।

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