Saturday, January 1, 2022

ग़ज़ल


टूटते ख्वाब की जो कहानी बनी।

लफ़्ज़ बिखरी हुई जिंदगानी बनी।।


हर्फ दर हर्फ जो उम्र लिखती रही

क्यूं उसी कारवाँ की रवानी बनी।।


रात परछाईयों की सहमती दिखे

क्या नज़र भी अभी ख़ानदानी बनी।।


ग़म सिखाते चले मुस्कुराना हमें

ज़िंदगी फिर यही आसमानी बनी।।


राख जो चिठ्ठियों की छिपा कर रखी

याद उस दौर की अब निशानी बनी ।।


अनिता सुधीर










11 comments:

  1. ग़म सिखाते चले मुस्कुराना हमें

    ज़िंदगी फिर यही आसमानी बनी।।

    वाह , बहुत खूब ।👌👌👌👌

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    1. हार्दिक आभार संगीता जी

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  2. बहुत सुंदर ग़ज़ल। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। नववर्ष 2022 की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  3. बहुत अच्छी गजल
    आपका नववर्ष मंगलमय हो

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    1. हार्दिक धन्यवाद आ0

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  5. वाह!गज़ब।
    नववर्ष की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएँ।
    सादर

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    1. हार्दिक आभार अनिता जी

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