बाल मन
चांद देखा जब सिया ने,भाव कोमल हँस पड़े हैं।
दृश्य पावन यह मनोरम,कल्पना लेकर उड़े हैं।।
शब्द की सामर्थ्य कहती,बचपना कब लिख सके हम
ओट से आ चांद बोले,हम निकट ही नित खड़े हैं।।
अनिता सुधीर आख्या
मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...
हम निकट ही नित खड़े हैं। बहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवाह
ReplyDeleteसुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद आ0
Deleteइतने सुंदर भाव! प्रशंसा हेतु शब्द ही नहीं हैं।
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