मुक्तक
ग़मों को उठा कर चला कारवां है।
बनी जिंदगी फिर धुआं ही धुआं है।।
जहां में मुसाफ़िर रहे चार दिन के
दिया क्यों बशर ने सदा इम्तिहां है।।
अनिता सुधीर आख्या
कुंडलिया दिवस की बधाई ईश्वर अंतर्यामी ईश में,निहित अखिल ब्रह्मांड। निराकार के रूप में,अद्भुत अर्थ प्रकांड ।। अद्भुत अर्थ प्रकांड,जगत के नीत...
सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद हरीश जी
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका
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