Saturday, October 3, 2020

बुद्धि बनी गांधारी


बुद्धि बनी गांधारी

विज्ञापन जब चौखट लांघे
बुद्धि बनी गांधारी

सजा धजा कर झूठ परोसा
चमचम रहती थाली
व्यंजन फीके निकले सारे
नमक मिर्च दें गाली
बाजार बजाता जब डमरू
चिल्लर बने जुआरी।।
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पतलून बेचती नारी जब
बिक्री दौड़ लगाती
उजली रहें कमीजें किसकी
साबुन बहस छिड़ाती
त्योहारों की धमाचौकड़ी
किश्तें करें उधारी।।
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शब्द लुभावन पासा फेंके 
मकड़जाल में मानव 
मस्तिष्क शिरा फड़फड़ करती
इच्छा बनती दानव
बंदर जैसे मानव नाचे
साधन बने मदारी।।
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अनिता सुधीर आख्या

18 comments:

  1. जी सादर धन्यवाद

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    Replies
    1. रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

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  3. वाह!सुंदर सृजन ।

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  4. यथार्थ प्रस्तुत करती सुन्दर रचना ।

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  5. शब्द लुभावन पासा फेंके
    मकड़जाल में मानव
    मस्तिष्क शिरा फड़फड़ करती
    इच्छा बनती दानव
    बंदर जैसे मानव नाचे
    साधन बने मदारी।।

    अद्धभुत भावाभिव्यक्ति

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  6. वाह सखी बहुत सुंदर ! सुंदर व्यंजनाएं लिए सुंदर नवगीत।

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