Sunday, March 21, 2021

कविता

विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं



खुली गाँठ मन पल्लू की जब
पृष्ठों पर कविता महकी

बनी प्रेयसी शिल्प छन्द की
मसि कागद पर वह सोई 
भावों की अभिव्यक्ति में फिर
कभी पीर सह कर रोई
देख बिलखती खंडित चूल्हा
आग काव्य की फिर लहकी।।

लिखे वीर रस सीमा पर जब
ये हथियार उठाती है
युग परिवर्तन की ताकत ले
बीज सृजन बो जाती है
आहद अनहद का नाद लिये
कविता शब्दों में  चहकी।।

शंख नाद कर कर्म क्षेत्र में 
स्वेद बहाती खेतों में
कभी विरह में लोट लगाती
नदी किनारे रेतों में
रही आम के बौरों पर वह
भौरों जैसी कुछ बहकी।।

झिलमिल ममता के आँचल में 
छाँव ढूँढती शीतलता
पर्वत शिखरों पर जा बैठी
भोर सुहानी सी कविता
अजर अमर की आस लिए फिर
युग के आँगन में कुहकी।।

अनिता सुधीर आख्या


























7 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय

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  2. बहुत सुन्दर गीत।
    मनोभावों की गहन अभिव्यक्ति।

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  3. कविता यात्रा पूरी लिख दी ... बहुत खूब ...

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