Monday, August 14, 2023

विभाजन

#विभाजन #विभीषिका

उप महाद्वीप का बँटवारा, बँटते जाते नदिया गाँव।
दर्द लिए चलती आजादी, ढूँढ़ रही थी फिर से ठाँव।।

बँटवारे में भाव बँटे थे, बार-बार रोया था धर्म।
मानवता भी शर्मसार थी, देखे जब दानव से कर्म।।

एक राष्ट्र का सपना देखा,उस पर हुआ कुठाराघात।
रक्त बहा था अपनों का ही,आया था फिर झंझावात।।

वर्षों का संघर्ष रहा था, देश हुआ था तब आजाद। 
और विभाजन बनी त्रासदी, कितने घर होते बर्बाद।। 

महिलाएँ बच्चे बूढ़े सब, विस्थापन का झेले दंश। 
नारी के तन से गुजरा था, सीमा रेखा का वह अंश।।

लाखों लोग हुए बेघर थे, उनका कौन करे भुगतान। 
रेडक्लिफ रेखा बँटवारा, कहाँ सफल था ये अभियान।।

धन दौलत के बंटवारे में,उपजे थे गहरे मतभेद।
भारत पर नित्य दबाव पड़े, जिसका अब भी मन में खेद।। 

युद्ध हुआ था दो देशों में, क्या यह था आजादी लक्ष्य।
लाखों जन भागे इधर उधर,अपनों के ही बनते भक्ष्य।। 

सरकार उपाय नहीं जाने, रोक सके हिंसा अपराध। नरसंहार हुआ  लाखों में, यात्रा कब थी फिर निर्बाध।।

हिंदू सिख को बाहर फेंका,ऐसा करता पाकिस्तान।
पर भारत के मुस्लिम जन को,नेता देते हिंदुस्तान।।

दो दिन देख तिरंगे को फिर,लौट चले थे पाकिस्तान।
कहाँ छोड़ना चाहा सबने,अपना प्यारा  हिंदुस्तान।।

गाड़ी पैदल हर साधन से, चलती थी तब भीड़ अपार।
भूखे नंगे भटके चलते, सह कर कितने अत्याचार।।

आज कलम भी रो पड़ती है,लिखे विभाजन का जब दर्द। 
ऐसी आजादी कब सोची, सपनों में लिपटी थी गर्द।।

अध्याय नया जो लिखा गया,अब अपना था भारत देश।
आजाद हवा में साँसे लेता,आजादी का नव परिवेश।।

अनिता सुधीर आख्या

3 comments:

  1. आज कलम भी रो पड़ती है,लिखे विभाजन का जब दर्द।
    ऐसी आजादी कब सोची, सपनों में लिपटी थी गर्द।।
    विचारणीय संदर्भ उठाया है आपने.
    बहुत ही सार्थक भाव के साथ।

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