वृंदावन
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वृंदावन की गलियों में जब,अज्ञानी मानव आता है।
पावन भू की रज छूते ही,परम ज्ञान सब वह पाता है।।
ब्रज मंडल की लीला न्यारी,श्याम सखा नित रास रचाएँ।
कण-कण में वन उपवन में हम,परम पुरुष के दर्शन पाएँ
रोम-रोम रोमांचित होकर,अंतस में ध्यान लगाता है।।
पावन भू की....
यमुना लहरें अठखेली कर,बंसी के नित गीत सुनातीं
वृक्ष लताएँ आलिंगन में,निधिवन की शुभ प्रीति सुनातीं।।
उलझ गया मन मोहक छवि में,मोहन से कैसा नाता है
पावन भू की....
सत्य शाश्वत समय खड़ा है,वृंदावन में डेरा डाले।
श्याम बिहारी के दर्शन से,गूढ़ भेद जीवन का पा ले।।
दिव्य अलौकिक अनुभव पाकर,जन्म सफल यह हो जाता है।
पावन भू की....
चित्र गूगल से साभार
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