कृष्ण कन्हैया
गीत
रास रचैया कृष्ण कन्हैया
छेड़ो मीठी तान।
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।।
द्वेष रायता फैलाते सब
चौराहों पर आज
मुख में मिश्री कर में छूरी
कैसा हुआ समाज
हृदय जलधि में खारापन है
नीर पिलाओ छान।
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।
सात छिद्र की बजा बाँसुरी
कर दो हिय अनुनाद
अंतर्मन की गुहिका गाए
फिर उसके ही बाद ।
प्रेम वेग की लहर उठा कर
करो धरा का त्राण
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।
कुंज गली में कहाँ छिपे हो,
गोकुल के तुम श्याम,
बरसाने' की होली ढूँढे
प्रेम राधिका नाम
ग्वाल बाल माखन को तरसें
करें गरल का पान
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।
रास रचैया कृष्ण कन्हैया
छेड़ो मीठी तान
बाँसुरिया की धुन को तरसे
जनमानस के प्रान।
अनिता सुधीर आख्या
लखनऊ
आप को सपरिवार शुभ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteDhanyawaad jee
Deleteद्वेष रायता फैलाते सब चौराहों पर आज, मुख में मिश्री कर में छूरी
ReplyDeleteकैसा हुआ समाज, हृदय जलधि में खारापन है, नीर पिलाओ छान। अत्यंत श्रेष्ठ कविता। हार्दिक अभिनंदन एवं जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।