चक्र
मूलाधार
चार पंखुड़ी का कमल,रंग चक्र का लाल।
साधे मूलाधार को,ऊँचा होगा भाल।।
**स्वाधिष्ठान
श्रोणि क्षेत्र के चक्र को,कहते स्वाधिष्ठान।
रंग संतरी सूर्य का, करता ऊर्जावान।।
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मणिपुर
नाभि क्षेत्र के चक्र में,पीत रंग उल्लास।
पाएँ मणिपुर ध्यान से,बुद्धि ज्ञान विश्वास।।
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अनाहत
चक्र हृदय के मध्य में,हरित अनाहत ध्यान।
प्रेम भाव संचार से, हुआ सतो गुण गान।।
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विशुद्धि
कंठ ग्रंथि के चक्र से,होती गरल विशुद्धि।
मनोभाव को शुद्ध कर,मिली संतुलित बुद्धि।।
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आज्ञा चक्र
नयन तीसरा ज्ञान का,प्रभु का आज्ञा द्वार।
देखें अंतर्ज्योति से ,अंतस का संसार।।
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सहस्त्रार
गुरु का सहस्त्रार में,साधक करता ध्यान।
तन मन का एकीकरण,मिला मौन का ज्ञान।।
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अनिता सुधीर आख्या
Sateek vyakhya
ReplyDeleteसादर आभार आ0
Deleteउत्कृष्ट रचना, सटीक व्याख्या के साथ
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आ0
Deleteइस रचना हेतु एक ही शब्द कह सकता हूँ - उत्कृष्ट
ReplyDeleteसादर प्रणाम आ0
ReplyDeleteसाधना के लिए चक्रों के बारे में सुंदर और सटीक जानकारी, सुंदर सृजन !
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
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