पैरालिंपिक
रोग तन मन को लगे जब,वश नहीं उस पर रहे।
जीत का रख हौसला जो,अनगिनत दुख नित सहे।
सोच से विकलांग ना बन,लक्ष्य ले वह चल पड़े
वह सबल दिव्यांग बन कर,नव सफलता नित कहें।।
अनिता सुधीर आख्या
मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...
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