Sunday, July 4, 2021

*अंतस ने अपनी पीर कही*


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*अंतस ने अपनी पीर कही*

आहत हो कर अंतस सोचे,कैसे पीर अपार लिखें।
रंग बदलते मानव के नित,कैसे क्षुद्र विकार लिखें।।

पढ़े चार अक्षर ये ज्ञानी,नित्य बखेड़ा करते जब
अपशब्दों का दौर चला है,कैसा जग व्यवहार लिखें।।

दूजे कंधे पर पग रखकर,अपनी राह बनाई जब
पूरा जीवन स्कंध कराहे,कैसे जग के वार लिखें।।

घात सहे नित पाषाणों से,उनको धीर धरे सहता 
सहन शक्ति औषधि बन पूछे,कैसे नित उपचार लिखें।।

रखे ताक पर चिंतन मंथन,कूप अहम से भरते जन
कलम तड़पती जब मेरी ये,कैसे लेखन धार लिखें।।

अनिता सुधीर आख्या

11 comments:

  1. दूजे कंधे पर पग रखकर,अपनी राह बनाई जब
    पूरा जीवन स्कंध कराहे,कैसे जग के वार लिखें।।

    बेहतरीन ग़ज़ल ।

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (5-07-2021 ) को 'कुछ है भी कुछ के लिये कुछ के लिये कुछ कुछ नहीं है'(चर्चा अंक- 4116) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. वाह!बेहतरीन सृजन।
    पढ़े चार अक्षर ये ज्ञानी,नित्य बखेड़ा करते जब
    अपशब्दों का दौर चला है,कैसा जग व्यवहार लिखें..वाह!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद
      अनिता जी

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  4. रखे ताक पर चिंतन मंथन,कूप अहम से भरते जन
    कलम तड़पती जब मेरी ये,कैसे लेखन धार लिखें।।
    अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  5. बहुत सुंदर भावभीनी अभिव्यक्ति

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  6. हार्दिक आभार आ0

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  7. बहुत उत्तम अभिव्यक्ति

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