Wednesday, March 16, 2022

होलिका दहन



होलिका दहन


आज का प्रह्लाद भूला

वो दहन की रीत अनुपम।।


पूर्णिमा की फागुनी को

है प्रतीक्षा बालियों की

जब फसल रूठी खड़ी है

आस कैसे थालियों की 

होलिका बैठी उदासी 

ढूँढती वो गीत अनुपम।।


खिड़कियाँ भी झाँकती है

काठ चौराहे पड़ा जो

उबटनों की मैल उजली

रस्म में रहता गड़ा जो

आज कहता भस्म खुद से

थी पुरानी भीत अनुपम।।


बांबियाँ दीमक कुतरती

टेसुओं की कालिमा से

भावना के वृक्ष सूखे

अग्नि की उस लालिमा से

सो गया उल्लास थक कर

याद करके प्रीत अनुपम।।


अनिता सुधीर आख्या



18 comments:

  1. बहुत अच्छी सारवान रचना हार्दिक बधाइयाँ

    ReplyDelete
  2. अति सुंदर एवं सार्थक सृजन 💐💐💐🙏🏼

    ReplyDelete
  3. होलिका बैठी उदासी🙏🙏

    ReplyDelete
  4. उत्कृष्ट,🙏🙏

    ReplyDelete
  5. Bahut sunder,bahut kuchh yaad aa gaya!!

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर भाव, उत्कृष्ट सृजन, होली की ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

    ReplyDelete
  7. सुंदर व्यंजनाओं से सुसज्जित सुंदर नव गीत।
    होली की हार्दिक शुभकामनाएं सखी।

    ReplyDelete
  8. *टेसुओं की कलमा से* वाह वाह

    ReplyDelete

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...