Wednesday, March 9, 2022

दर्पण


मुक्तक

1)

दर्पण तुम लोगों को आइना दिखाते हो।

बड़ा अभिमान तुमको कि तुम सच बताते हो।

बिना उजाले के क्या अस्तित्व रहा तेरा ,

दायें को बायें कर तुम क्यों इतराते हो ।।

2)

ये दर्पण पर सीलापन था।

या छाया का पीलापन था ।।

दर्पण को पोछा बार -बार ,

क्या आँखो का गीलापन था ।

3)

हर शख्स ने चेहरे पर चेहरा लगा रखा है ।

अधरों पर हंसी, सीने में दर्द सजा रखा है ।

सुंदर मुखौटों का झूठ बताता है आईना ,

और मायावी दुनिया का सच छिपा रखा है।


©anita_sudhir



No comments:

Post a Comment

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...