चाल पासा चल गया अभियान में
ढेर होते सूरमा मैदान में।।
झूमता सा पद नशे में जब चला
दौड़ कुर्सी की लगी दालान में।।
चार दिन की चाँदनी धूमिल हुई
बीतती है उम्र भी पहचान में।।
मान कह के जो लिया तो क्या लिया
लीजिए इसको सभी संज्ञान में।।
नाम उनका ही अमर हो जाएगा
जो रहे नित सत्य के प्रतिमान में।।
शासकों का जब नया अवतार हो
नीतियाँ इतरा चलें उत्थान में।।
पाँव भी कब तक खड़े होंगे यहाँ
तीर सारे जब जुटे संधान में।।
अनिता सुधीर आख्या
अपनी समग्रता में यह ग़ज़ल निश्चय ही सराहनीय है।
ReplyDeleteउम्र ही बीत जाती है पहचान में सुंदर रचना
ReplyDeleteनाम उनका ही अमर हो जाएगा
ReplyDeleteजो रहे नित सत्य के प्रतिमान में।।
बेहतरीन ग़ज़ल!!
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति
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