पाखंड
नवगीत
मीन छल से जब निगलते
ढोंग हँसता खिलखिलाकर
वस्त्र उजले श्याम मन के
दीप बाती कर रहे हैं
दाग को मैला करे अब
हुंडियाँ वो भर रहे हैं
धर्म में फिर धन घुसा जो
मर्म भागा चिड़चिड़ाकर।।
ढोंग..
जब हवा ले साथ चलती
बात ये पगडंडियों की
तर्क का सूरज डुबाते
जीत फिर पाखंडियों की
धर्म का ये डर दिखाते
पाप की घंटी बजाकर।।
ढोंग..
भक्त बगुले लीन तप में
श्राद्ध पूजे नीतियों को
मंदिरों में इष्ट बेबस
देख जग की रीतियों को
श्वेत बगुला हँस रहा है
हंस रोता तिलमिला कर।।
ढोंग..
अनिता सुधीर आख्या
पुण्य पर्व की शुभकामनाएं
ReplyDeleteसादर आभार
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