Saturday, October 21, 2023

पाखंड

 पाखंड



नवगीत


मीन छल से जब निगलते

ढोंग हँसता खिलखिलाकर


वस्त्र उजले श्याम मन के

दीप बाती कर रहे हैं

दाग को  मैला करे अब

हुंडियाँ वो भर रहे हैं

धर्म में फिर धन घुसा जो

मर्म भागा चिड़चिड़ाकर।।

ढोंग..


जब हवा ले साथ चलती

बात ये पगडंडियों की

तर्क का सूरज डुबाते

जीत फिर पाखंडियों की

धर्म का ये डर दिखाते

पाप की घंटी बजाकर।।

ढोंग..


भक्त बगुले लीन तप में 

श्राद्ध पूजे नीतियों को

मंदिरों में इष्ट बेबस

देख जग की रीतियों को

श्वेत बगुला हँस रहा है

हंस रोता तिलमिला कर।।

ढोंग..


अनिता सुधीर आख्या

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