लघुकथा
रंगमंच
**
सुनते सुनते थक गया हूं कि दुनिया रंगमंच है और तू किरदार!
मैं ही हमेशा क्यों किरदार बनूं !
अब नहीं जीना मुझे ये जीवन.
मेरी डोर सदैव किसी के हाथ में क्यों रहे ...
कहते हुए बड़ी तेज गुस्से में चिल्लाया था "तन "
जी हाँ मेरा अपना " तन "
आज से मैं रंगमंच हूँ...
यदि मैं रंगमंच तो फिर किरदार कौन ?
अकुलाहट भरे मन ने कोने से दबी आवाज लगाई, अब मैं किरदार हूँ,
तुम किरदार बन मनमानी करते रहे और पतन की ओर जा रहे हो !
मुझे तुम्हारे इस तन के रंगमंच पर अपना किरदार निभाना है और अभिनय को वास्तविक रूप देना है।
बाहर की आवाजें कैमरा लाइट साउंड कट बहुत सुन चुके।
कुर्सियां खाली पड़ती जा रहीं हैं।
अब अन्तर्मन के लाइट और साउंड को सुन अभिनय करना है ।
नेपथ्य से नई आवाजें आने लगी हैं..
अनिता सुधीर
रंगमंच
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सुनते सुनते थक गया हूं कि दुनिया रंगमंच है और तू किरदार!
मैं ही हमेशा क्यों किरदार बनूं !
अब नहीं जीना मुझे ये जीवन.
मेरी डोर सदैव किसी के हाथ में क्यों रहे ...
कहते हुए बड़ी तेज गुस्से में चिल्लाया था "तन "
जी हाँ मेरा अपना " तन "
आज से मैं रंगमंच हूँ...
यदि मैं रंगमंच तो फिर किरदार कौन ?
अकुलाहट भरे मन ने कोने से दबी आवाज लगाई, अब मैं किरदार हूँ,
तुम किरदार बन मनमानी करते रहे और पतन की ओर जा रहे हो !
मुझे तुम्हारे इस तन के रंगमंच पर अपना किरदार निभाना है और अभिनय को वास्तविक रूप देना है।
बाहर की आवाजें कैमरा लाइट साउंड कट बहुत सुन चुके।
कुर्सियां खाली पड़ती जा रहीं हैं।
अब अन्तर्मन के लाइट और साउंड को सुन अभिनय करना है ।
नेपथ्य से नई आवाजें आने लगी हैं..
अनिता सुधीर
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 31 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी रचना को साझा करने के लिये हार्दिक आभार
Deleteवाह!
ReplyDeleteजी सादर धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteJee सादर अभिवादन
Deleteजी सादर अभिवादन
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