Saturday, October 12, 2019

प्रेम के विभिन्न रूप ...

शाश्वत भाव लिये  प्रेम कण कण में समाया हुआ है।अपरिमित ,अपरिभाषित असीमित प्रेम की अनुभूति और  सौंदर्य अद्वितीय और विलक्षण है ।
कभी वात्सल्य में ,तो कभी पिता की डांट में ,कभी गुरु के अनुशासन में मुखर हो उठता  है ये प्रेम ।तो कभी खामोश रह कर त्याग , बलिदान  और सेवा में दिखाई पड़ता है ।
प्रेम के विभिन्न आयामों को एक साथ पिरोया है
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दोहा छन्द  के माध्यम से
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सूना है सब प्रेम बिन, कैसे ये समझाय।
त्याग भाव हो प्रेम में ,प्रेम अमर हो जाय ।।

आदर जो हो प्रेम में,सबका मान बढ़ाय।
बंधन रिश्तों में  रहे ,जीवन सफल बनाय।।

प्रेम रंग से जो रँगे ,मन पावन हो  जाय ।
भक्ति भाव हो  प्रेम में,पूजा ये कहलाय ।।

मात पिता के प्रेम सा ,दूजा न कोइ प्यार।
साथ गुरु का प्रेम हो, जीवन धन्य अपार।।

बाँधे बंधन नेह के ,पावन  रेशम डोर।
भ्रात बहन के प्रेम में,भीगे मन का कोर।।

रक्षा बंधन पर्व का ,करें सार्थक अर्थ ।
प्रकृति से जो प्रेम करें,होंगें तभी समर्थ।।

प्रेम दिलो में जो बसे ,  नफरत कैसे आय।
सबकी सोच अलग रही, बीता दो बिसराय ।।

हिंदी भाषा आन  है, हिन्दी भाषा शान।
भाषा से अनुराग हो ,रखिये इसका मान।।

मानव और प्रकृति का,रिश्ता है अनमोल।
देव रुप में पूज्य ये ,समझ प्रेम का मोल ।।

अद्भुत सारे प्रेम हैं , देश बड़ा नहि कोय।
नाम देश के मर मिटें, बिरले  ऐसे होय ।।

अनिता सुधीर


5 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  2. अद्भुत सारे प्रेम हैं , देश बड़ा नहि कोय
    नाम देश के मर मिटें, बिरले ऐसे होय

    सचमुच देशप्रेम से बड़ा कुछ नहीं ,बहुत सुंदर रचना ,सादर नमन अनीता जी

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  3. बहुत सुंदर संकलन

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति सखी

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  5. प्रेम के विविध स्वरुपों का सुंदर वर्णन।

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