Saturday, October 5, 2019

*निःशब्द*

निःशब्द हो जाती हूं
जब विद्वजनों की लेखनी
में खो  जाती  हूँ
और लेखन रस के संसार में
डूब  जाती हूँ ।
कलाकारों की कलाकृतियां
देख साँस थामे
नि:शब्द अपने भाव
प्रकट कर आती हूँ
उन उंगलियों का स्पर्श
कर ,मौन प्रशंसा कर आती हूँ।
निःशब्द परमसत्ता
के रहस्यमयी संसार में हूँ
निःशब्द मन की उड़ान में हूँ।
पर आज
निःशब्द हूँ.....
इतिहास में दफन राज
पर होती निरर्थक बहस
और विचार से ,
बिना समय ,परिस्थिति जाने
उसकी सत्यता से ,
महापुरुषों को अपशब्द कहने से ..
झाड़ू की राजनीति से..
वर्तमान काल पर
सत्यता, ईमानदारी से
बिना भेदभाव के
कौन शब्द दे पायेगा..
कौन इसे परख पायेगा
और भविष्य में फिर
इतिहास दोहराया जायेगा...
अब शब्द देने पड़ेंगे
विचारों की स्वच्छता के लिए
सत्य की कसौटी के लिए ,
देशहित में परिपक्वता के लिए
जन  मस्तिष्क में भरे
जहर को दूर करने के लिए
अब शब्द देने पडेंगे।
वाणी मुखर करनी होगी ।
©anita_sudhir

5 comments:

  1. आ0 सादर अभिवादन

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  2. बहुत सुंदर सृजन अनिता जी, निशब्द करता रहता है हर कृतित्व हर शै प्रकृति का।
    वाह।

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  3. जी हार्दिक आभार
    और अब निःशब्द हूँ निरर्थक की बहस पर

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  4. सुन्दर कविता

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