Thursday, November 30, 2023

जीवन साँझ

गीत

झरते पातों का अब जीवन
तनिक बैठ कर सुस्ता ले
कितनी सड़कें नापीं तुमने
पूछे पांवों के छाले।


मृगतृष्णा की चाह लगी थी
कितने कूएँ खोद लिये ,
रिसते पिसते घावों को सह
अनगिन दुख को गोद लिये
भंवर जाल में डूबे उतरे
सर्प बहुत डसते काले।।
कितनी सड़कें नापीं तुमने
पूछे पांवों के छाले।।

नवल वसन की आस करे अब
क्लांत शिथिल जर्जर काया।
यादों की झोली में रक्खा ,
सुर्ख पंखुड़ी की माया।
लगा हुआ था मेला जग का
स्मृतियों को कहां छिपा ले
कितनी सड़कें नापीं तुमने
पूछे पांवों के छाले।।

एक अकेला साथी मनवा
बँधा हुआ परिपाटी से
टूट शाख से अलग पड़ा अब
मिलना होगा माटी से,
स्याह रात के टिम टिम जुगनू
चाहें पतझड़ पर ताले
कितनी सड़कें नापीं तुमने
पूछे पांवों के छाले।।

अनिता सुधीर

6 comments:

  1. Manav Jeevan ka yatharth hai. Kabhi mirgatrishna khatam hi nahi hoti

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सुनील

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  2. Very nice poem Anita

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  3. Prashn uthte hain par hum unhe ansuna kar dete hain. Kash kuchh der ruk kar uttar talaashe to yatra ka anand utha paye.
    Amita Bajpai

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    Replies
    1. Sahi kaha amita
      Sab jante hue bhee wahi daud lagi rahti hai
      Bahut bahut dhanyawad

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