एक गीत लिखते है
***
भावों के मोती चुन चुन कर,सृजन नया अब करते हैं,
नेह निमंत्रण मिला आपका,चलो एक गीत लिखते हैं
प्रभु चरणों में नमन लिखूँ,मातु पिता वंदन लिखूँ, त्याग,समर्पण प्रेम लिखूँ,या वो नया आवास लिखूँ...
दरवाजे पर टिकी निगाहें, वो वृद्धाश्रम में रहते हैं,
भीगे नयनों को स्याही बना ,चलो एक गीत लिखते हैं
नेह निमंत्रण ....
पिंजरे में कैद पंछी लिखूँ,या बेड़ियों में जकड़ी लिखूँ,
नभ की स्वच्छंद उड़ान लिखूँ, नारी का उत्थान लिखूँ...
उस वेदना को कैसे लिखूँ,जो अपने ही छला करते हैं,
मर्यादा की मसि बनाकर ,चलो एक गीत लिखते हैं ।
नेह निमंत्रण ....
चराचर जगत का शोर लिखूँ,या अंतस का मैं मौन लिखूँ,
लिप्त में निर्लिप्त भाव लिखूँ ,मोह में नया वैराग्य लिखूँ,
स्वयं से स्वयं की पहचान का,मार्ग नया चुनते हैं,
अंतःकरण की शुद्धि से ,चलो एक गीत लिखते हैं ।
नेह निमंत्रण ....
रवि किरणों का प्रातः लिखूँ,धुंध से धूमिल गगन लिखूँ,
अविरल अविरामी लिखूँ,या प्रदूषित नदिया नाला लिखूँ,
शुद्ध हवा को तरसे शब्द ,कैसा फल हम भुगतते हैं,
अपनी विनाश लीला का ,चलो एक गीत लिखते हैं।
नेह निमंत्रण ....
✍
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भावों के मोती चुन चुन कर,सृजन नया अब करते हैं,
नेह निमंत्रण मिला आपका,चलो एक गीत लिखते हैं
प्रभु चरणों में नमन लिखूँ,मातु पिता वंदन लिखूँ, त्याग,समर्पण प्रेम लिखूँ,या वो नया आवास लिखूँ...
दरवाजे पर टिकी निगाहें, वो वृद्धाश्रम में रहते हैं,
भीगे नयनों को स्याही बना ,चलो एक गीत लिखते हैं
नेह निमंत्रण ....
पिंजरे में कैद पंछी लिखूँ,या बेड़ियों में जकड़ी लिखूँ,
नभ की स्वच्छंद उड़ान लिखूँ, नारी का उत्थान लिखूँ...
उस वेदना को कैसे लिखूँ,जो अपने ही छला करते हैं,
मर्यादा की मसि बनाकर ,चलो एक गीत लिखते हैं ।
नेह निमंत्रण ....
चराचर जगत का शोर लिखूँ,या अंतस का मैं मौन लिखूँ,
लिप्त में निर्लिप्त भाव लिखूँ ,मोह में नया वैराग्य लिखूँ,
स्वयं से स्वयं की पहचान का,मार्ग नया चुनते हैं,
अंतःकरण की शुद्धि से ,चलो एक गीत लिखते हैं ।
नेह निमंत्रण ....
रवि किरणों का प्रातः लिखूँ,धुंध से धूमिल गगन लिखूँ,
अविरल अविरामी लिखूँ,या प्रदूषित नदिया नाला लिखूँ,
शुद्ध हवा को तरसे शब्द ,कैसा फल हम भुगतते हैं,
अपनी विनाश लीला का ,चलो एक गीत लिखते हैं।
नेह निमंत्रण ....
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 09 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर आभार
ReplyDeleteAntahstal ki samvednaon ki sundar vyakhya : chalo ek geet likhte hain, sadhuvad
ReplyDeleteचराचर जगत का शोर लिखूं या अंतस का में मौन लिखूँ'
ReplyDeleteइन पंक्तियों ने पूरी कविता का भाव सोख लिया... कवि का अंतस मन कितनी सारी संवेदनाओं के भाव के साथ हिचकोले ले रहा है.. सब कुछ समेट कर एक गीत लिखना चाहता है बहुत ही अच्छी लगी आप की कविता
आ0 सादर आभार
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