पुरुष
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पुरुषों को बड़ी आसानी से हम दोष दे देते है
माँ बेटी बहन तुम्हारे घर में, नही कह देते है ।
क्या कहोगे,नारी ही नारी की दुश्मन बन जाए
बाग का माली ही कलियों का भक्षक बन जाए।
नारी होकर जब नारी का मर्म समझ न पायी
कर सारे कृत्य घिनौने ,क्या तुम्हें शर्म न आयी ।
सारी नारी जाति को शर्मिंदा कर के रख दिया
सीता दुर्गा के देश मे ये नंगा खेल रच दिया ।
समाज कहाँ जा रहा,क्या है परिवार के मायने
अब कौन कहाँ सुरक्षित है,यक्ष प्रश्न है सामने ।
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पुरुषों को बड़ी आसानी से हम दोष दे देते है
माँ बेटी बहन तुम्हारे घर में, नही कह देते है ।
क्या कहोगे,नारी ही नारी की दुश्मन बन जाए
बाग का माली ही कलियों का भक्षक बन जाए।
नारी होकर जब नारी का मर्म समझ न पायी
कर सारे कृत्य घिनौने ,क्या तुम्हें शर्म न आयी ।
सारी नारी जाति को शर्मिंदा कर के रख दिया
सीता दुर्गा के देश मे ये नंगा खेल रच दिया ।
समाज कहाँ जा रहा,क्या है परिवार के मायने
अब कौन कहाँ सुरक्षित है,यक्ष प्रश्न है सामने ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी धन्यवाद
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