Friday, July 15, 2022

स्वर्ण विहग के घाव


 स्वर्ण विहग के घाव (कुछ पन्ने इतिहास के)


मैं अपना यह खंडकाव्य आजादी के सभी नायकों और वीर सेनानियों को समर्पित करती हूँ जिनके बलिदानी गाथा के कारण हम स्वतंत्र हवा में सांस ले रहे हैं। 



पैरों में थीं बेड़ियाँ,फैला था संताप। 

स्वर्ण विहग के घाव को,दूर करे थे आप।।

करूँ समर्पित आपको, खंडकाव्य यह आज।

अमिट अमर बलिदान की, रखे हृदय में छाप।।


वीर सपूतों को शत-शत नमन

आख्या अभिव्यक्ति

माँ शारदे और इष्ट देव को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करती हूँ जिनके आशीर्वाद से यह मेरा खंडकाव्य 

 स्वर्ण विहग के घाव (कुछ पन्ने इतिहास के)

 आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर और अमृत महोत्सव की शृंखला  में आकार ले रहा है। 


भारत की गौरवशाली संस्कृति और सोने की चिड़िया का स्वर्णिम इतिहास सदा ही आत्म विभोर करता रहा है।

इन्ही गौरवमयी स्मृतियों के पल में मेरे मन में कितने भाव आते हैं जो कभी आह्लादित करते हैं तो कभी गहन पीड़ा और विषाद से भर देते हैं।


आक्रांताओं और गद्दारों की कुटिल चालों के कारण

स्वर्ण विहग ने अत्यंत घाव सहे हैं और ऐसा महान देश सदियों तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा है।

 यह पढ़ते और लिखते समय मेरी कलम कितनी ही बार रोई है और असह्य वेदना का अनुभव हुआ है।

इतिहास के इन पृष्ठों का संघर्ष और अनगिन बलिदानी गाथाओं को शब्दों में बाँध पाना असंभव है किंतु सवैया कुंडलिया और आल्हा छंद के माध्यम से एक तुच्छ प्रयास किया है।

इस प्रयास में आ0 संजय कौशिक विज्ञात जी और कलम की सुगंध पटल का निरंतर सहयोग मिलता रहा।

आ0 गुरुदेव और आ0 नीतू जी के पग-पग पर मार्गदर्शन और प्रोत्साहन से ही ये कार्य संभव हो सका है।


स्वदेशी, स्वतंत्रता, देश प्रेम एक भाव है, एक विचार है, कर्म और चिंतन है जिसके सामने सब कुछ नगण्य हो जाता है। इसी भाव को साथ लेकर अनगिन वीर सेनानियों ने आजादी के संघर्ष में अपने प्राण आहुत किये हैं।

कुछ याद रहे और उनकी अमिट छाप हृदय पटल पर अंकित है तो कुछ इतिहास के पन्नों में गुमनाम रहे।

उन सभी वीर योद्धाओं को अपने भाव सुमन अर्पित करती हूँ । सभी को लिख पाना तो संभव नहीं था 

किंतु प्रयत्न अवश्य किया है।

इन सैनिकों के अमर गाथा के कारण ही भारत देश आज अमरता की ओर चल पड़ा है।

आ0 विज्ञात जी द्वारा नए छंदों पर शोध किये गए छंद में से एक आख्या छंद पर सेनानियों का परिचय लिखा है।

 आज इन्हीं के शौर्य के कारण ही देश आजाद हवा में साँसे ले रहा है। इसी विरासत को हमें अब सँभालना है।


अपने हित को जब साधेंगे,सदा देश के ही उपरांत।

भारत उन्नत भाल रहेगा,और अडिग होगा दृष्टांत।।


विज्ञात प्रकाशन का हार्दिक आभार जिससे यह खंड काव्य मूर्त रूप ले सका।


पति,परिवार और मित्रों के सहयोग और प्रोत्साहन से मुझे सदा संबल मिला है,जिसका परिणाम आपके समक्ष है और ये खंड काव्य आपके आशीष और स्नेहिल प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में है....


अब आत्म बोध का हो विचार।

मिल लक्ष्य साध लो सब अपार।।

हों स्वर्ण विहग के नव्य पंख,

सुन मातु भारती की पुकार।।


अनिता सुधीर 'आख्या'







3 comments:

  1. पुस्तक का शीर्षक ही बहुत कुछ कह रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव पर इस अनुपम रचना पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। पाठकों को एक और उत्कृष्ट रचना मिलेगी।

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  2. बहुत सुंदर शानदार विचार,अनन्त शुभकामनाएं एवं बधाइयां

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