पावन मंच को नमन
न्याय
न्याय के मंदिर में
आँखों पर पट्टी बांधे
मैं न्याय की देवी ..
प्रतीक्षा रत ...
कब दे पाऊँगी न्याय सबको...
हाथ में तराजू और तलवार लिये
तारीखों पर तारीख की
आवाजें सुनती रहती हूँ ..
वो चेहरे देख नहीं पाती ,पर
उनकी वेदना समझ पाती हूँ
जो आये होंगे
न्याय की आस में
शायद कुछ गहने गिरवी रख
वकील की फीस चुकाई होगी
या फिर थोड़ी सी जमीन बेच
बेटी के इज्जत की सुनवाई में
बचा सम्मान फिर गवाया होगा
और मिलता क्या ..
एक और तारीख ,
मैं न्याय की देवी प्रतीक्षा रत ....
कब मिलेगा इनको न्याय...
सुनती हूँ
सच को दफन करने की चीखें
खनकते सिक्कों की आवाजें
वो अट्टहास झूठी जीत का
फाइलों में कैद कागज के
फड़फड़ाने की,
पथराई आँखो के मौन
हो चुके शब्दों के कसमसाने की
शब्द भी स्तब्ध रह जाते
सुनाई पड़ती ठक ठक !
कलम के आवरण से
निकलने की बैचेनी
सुन लेती हूँ
कब लिखे वो न्याय
मैं न्याय की देवी प्रतीक्षारत....
महसूस करती हूँ
शायद यहाँ लोग
काला पहनते होंगे
जो अवशोषित करता होगा
झूठ फरेब बेईमानी
तभी मंदिर बनता जा रहा
अपराधियों का अड्डा
कब मिलेगा न्याय और
कैसे मिलेगा न्याय
जब सबूतों को
मार दी जाती गोली
मंदिर परिसर में
मैं मौन पट्टी बांधे इंतजार में
सबको कब मिलेगा न्याय..
अनिता सुधीर
अब तो लगता है आँख पर पट्टी बांधे न्याय की देवी भी अन्याय होते देख थक चली है । अच्छी रचना ।
ReplyDeleteअत्यंत संवेदनशील एवं सटीक सृजन 💐💐💐💐🙏🏼
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आ0
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteमार्मिक अभिव्यक्ति, वाह वाह!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
Deleteहृदयस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आ0
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