पावन मंच को नमन
कुंडलियां
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माया भ्रम के जाल में, भेद छिपा अति गूढ़।
जग-मिथ्या के अर्थ में, उलझी मैं मतिमूढ़।।
उलझी मैं मतिमूढ़, जगत यदि मिथ्या माना ।
परम ब्रह्म ही सत्य, कर्म की गति को जाना।।
यदि झूठा संसार, झूठ क्या मानव काया।
सत्य गुणों से जान, सगुण निर्गुण की माया।।
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माया ठगिनी डोलती, बदल-बदल कर रूप।
धन दौलत सब चाहते, रहे रंक या भूप।।
रहे रंक या भूप, लगी तृष्णा जो मन की।
बिक जाता ईमान, मिटे पर भूख न इनकी।।
करा रही नित पाप, रुपैया जी भर खाया।
बुझी नहीं है प्यास, यही दौलत की माया।।
अनिता सुधीर
गहन चिंतन। गूढ़ दार्शनिक भाव। अप्रतिम। अतुल्य। हार्दिक बधाई 🌹🌹
ReplyDeleteसादर नमन आ0
ReplyDelete"करा रही नित पाप, रुपैया जी भर खाया।
ReplyDeleteबुझी नहीं है प्यास, यही दौलत की माया।।"
क्या बात .. बहुत खूब
जी धन्यवाद
Deleteबुझी नहीं है प्यास, यही दौलत की माया🙏🙏 सटीक सार्थक कुंडलिया छंद🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
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