*विधाता छन्द*
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हरी जब ओढ़ती चूनर,धरा शृंगार करती है।
फुहारें पड़ रहीं रिमझिम, सजा कर माँग भरती है।।
सुहाना मास सावन का, रचाती मेहंदी सखियाँ।
सताती याद पीहर की,बरसती नेह में अँखियाँ ।।
पपीहे शोर करते हैं, घटाएं जब उमड़तीं है।
अगन तन में जले जब भी, मिलन को वे तड़पतीं है।
सुनी कजरी लुभावन सी, पड़े जो बाग में झूले।
मनें त्यौहार अब सारे, पुरातन पल कहाँ भूले ।।
लिए काँवड़ चले सब जन, कि शिव का मास सावन है।
सजे मंदिर बढ़ी रौनक, रहा यह मास पावन है।।
चढ़ा कर दुग्ध की धारा, धतूरा भी चढ़ाते हैं ।
कृपा कर दो उमापति अब,लगन तुममें बढ़ाते हैं।।
अनिता सुधीर आख्या
वाह! सुंदर
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