Sunday, July 23, 2023

एकाकीपन


 नवगीत


एकाकीपन


घर पीछे बड़बेर

सुना बेरों से बतियाती।।


अलसायी सी रात

व्यथित हो चौखट पर बैठी

पोपल मुख निस्तेज

करे यादों में घुसपैठी

काँप उठी फिर श्वास

तभी बंधन को बहलाती।।



पतझड़ का आतिथ्य

कराता शूलों को पीड़ा 

जीवन त्यागे राग

उदासे सुर भूले क्रीड़ा

ओसारे की खाट

व्यर्थ में ही शोर मचाती।।


दीवारों के हास्य

नयन क्रंदन के घेरे में

बौना हो अस्तित्व

फँसा जीवन के फेरे में

एकाकी की पीर

सदा भावों को सहलाती।।


अनिता सुधीर आख्या 

लखनऊ


10 comments:

  1. मर्मस्पर्शी काव्याभिव्यक्ति जिसे काव्यमय भावाभिव्यक्ति कहा जाना अधिक उपयुक्त होगा। इस नवगीत का एक-एक शब्द किसी भी संवेदनशील हृदय को पिघला देने तथा नेत्र सजल कर देने में सक्षम है।

    ReplyDelete
  2. आ0 रचना के मर्म तक पहुंचने के लिए हृदयतल से आभार

    ReplyDelete
  3. अति उत्तम अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  4. मर्म को स्पर्श करती सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद आ0

      Delete
  5. परिवार में रहकर भी एकाकी रह जाना कैसा पीड़ादायक होता है, कोई भुक्त भोगी ही जान सकता है, ओसारे की खाट ने सब बयान कर दिया

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना के मर्म तक पहुंचने के लिए हार्दिक आभार

      Delete
  6. सीधे हृदय तल की गहराइयों को स्पर्श करती हुई यह कविता बड़ी सारगर्भित है।

    ReplyDelete
  7. सादर प्रणाम आ0

    ReplyDelete

देव दीपावली

दीप माला की छटा से,घाट सारे जगमगाएं। देव की दीपावली है,हम सभी मिल कर मनाएं।। भक्ति की डुबकी लगाएं,पावनी जल गंग में जब, दूर करके उर तमस को,दि...