प्रेम-मोह
***
प्रेम मोह में भेद कर,हे मानव विद्वान।
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्त्व को जान।।
त्याग समर्पण प्रेम में,भाव रखे निस्वार्थ।
स्वार्थ प्रेम में मोह है,समझें यही यथार्थ।।
पुत्र मोह धृतराष्ट्र सम,होता गरल समान
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।
प्रेम मोह को साथ रख,करें उचित व्यवहार।
सीमा में रख मोह को ,यही प्रेम आधार।।
हरिश्चंद्र के प्रेम का,दिव्य रूप पहचान।
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।
शत्रु मनुज के पाँच ये,काम क्रोध अरु लोभ।
उलझे माया मोह जो,मन में रहे विक्षोभ।।
उचित समन्वय में रहे,जीवन का उत्थान
रेख बड़ी बारीक है,मूल तत्व को जान।।
अनिता सुधीर आख्या
अति सुंदर। सूक्ष्म विश्लेषण। साधुवाद
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteरेख तो सचमुच बारीक ही है और जीवन का उत्थान उचित समन्वय में ही है। गागर में सागर सरीखी रचना द्वारा इस मूल तत्व की मीमांसा हेतु कवयित्री का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआपका अतिशय आभार आ0
DeleteBhut sundar
ReplyDelete