चित्र गूगल से
जल प्रबंधन
प्यासी मौतें डेरा डाले
पीड़ा नीर प्रबंधन की
सूरज छत पर चढ़ कर नाचे
जनजीवन कुढ़-कुढ़ मरता
ताप चढ़ा कर तरुवर सोचे
किस की करनी को भरता
ताल-नदी का वक्ष सूखता
आशा पय संवर्धन की।।
कानाफूसी करती सड़कें
चौराहे का नल सूखा
चूल्हा देखे खाली बर्तन
कच्चा चावल है भूखा
माँग रही है विधिवत रोटी
भूख बिलखती निर्धन की।।
बूँद टपकती नित ही तरसे
कैसे जीवन भर जाऊँ
नारे भाषण बाजी से अब
कैसे मन को बहलाऊँ
बाढ़ खड़ी हो दुखियारी बन
जन सोचे अवरोधन की।।
अनिता सुधीर
वाह वाह
ReplyDeleteअत्यन्त प्रशंसनीय कविता
ReplyDeleteसादरधन्यवाद
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