नवगीत
आधुनिकता
फुनगी पर जो
बैठे नंद।
नव पीढ़ी के
गाते छंद।।
व्यथा नींव की
सहती मोच
दीवारों पर
चिपकी सोच
अक्ल हुई अब
डिब्बा बंद।।
ऊँचे तेवर
थोथे लोग
झूम रहे तन
मदिरा भोग
उलझे धागे
जीवन फंद।।
चढ़ा मुलम्मा
छोड़े रंग
बेढंगी ने
जीती जंग
आजादी की
मचती द्वंद्व।।
मर्यादा की
बहकी चाल
लज्जा कहती
अपना हाल
आभूषण अब
पहनें चंद।।
अनिता सुधीर आख्या
न्यूनतम शब्दों के संग महत्तर सत्य का निरूपण करने में आप अद्वितीय हैं। चढ़ा मुलम्मा छोड़े रंग, बेढंगी ने जीती जंग। बहुत ख़ूब !
ReplyDeleteसादर आभार आ0
Delete