आधार छंद माधव मालती
मात्रा- 28,(मापनी युक्त मात्रिक)
मापनी-गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा
समांत- आर, पदांत- हो तुम
प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणी मातु शक्ति को नमन
गीतिका-
पायलों की रुनझुनों में,काल की टंकार हो तुम।
नीतियों की सत्यता में,चंद्र का आधार हो तुम।।
खो रहा अस्तित्व था जब, लुप्त होती भावना में,
आस का सूरज जगाए,भोर का उजियार हो तुम।।
जब छिपी सी धूप होती,तब लड़ी तुम बादलों से
लक्ष्य की इस पटकथा में,भाल का शृंगार हो तुम।।
साधनों की रिक्तता में,हौसले के साज रखती
खेल टूटी डंडियों में,प्रीत का अँकवार हो तुम।
रच रहा इतिहास नूतन,स्वप्न अंतस में सँजोये
कोटि जन के भाव कहते,देश का आभार हो तुम।।
अनिता सुधीर आख्या
'लक्ष्य की इस पटकथा में भाल का शृंगार हो तुम' तथा 'खेल टूटी डंडियों में प्रीत का अँकवार हो तुम' जैसे अनूठे बिम्बों से सुसम्पन्न माधव-मालती छंद में मातु-शक्ति को नमन करती अद्भुत रचना है यह।
ReplyDeleteसादर अभिवादन आ0
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