चित्र गूगल से साभार
कुंडलियां
सपना कुर्सी का लिए,चलें विपक्षी चाल।
बैठक में मतभेद रख,रँगते अपनी खाल।।
रँगते अपनी खाल,लिए भारत का ठेका।
पाने मोटा माल,दिखाते फिर से एका।।
देता विगत प्रमाण,कहाँ कब कोई अपना।
खिँचती है जब टाँग,टूटता प्यारा सपना।।
अनिता सुधीर आख्या
Bahut khoob
ReplyDeleteधन्यवाद उषा
Deleteसटीक कुंडलियां
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत बढियां
ReplyDeleteधन्यवाद भारती जी
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