Tuesday, October 15, 2019




हूँ मैं

बिखरे अल्फाजों की कहानी हूँ मैं
टूटे हुऐ ख्वाबों की रवानी हूँ मैं।

शौक नये पालने की फितरत उनकी
शराब मयखाने  की पुरानी हूँ मैं ।

हर्फ दर हर्फ वो ताउम्र लिखते रहे
अनकहे जज्बातों की जुबानी हूँ मैं।

तन्हाईयाँ  मुहब्बत में साथ रहीं
इंतजार की लंबी कहानी हूँ मैं।

राख चिट्ठियों की बन्द डिब्बियों में
बीते हुए लम्हों की जुबानी हूँ मैं।

परछाइयाँ  तैरती रहीं रात भर यूँ
इन नयनों का बहता पानी हूँ मैं ।

मुश्किलों में मुस्कराना सीखा जबसे
अपनी जिंदगी की जिंदगानी हूँ मैं ।

मशालों को थामे रहा करती थी ,
अब गुजरे जमाने की निशानी हूँ मैं ।

बेफिक्री में लम्हें गुजारा करती हूँ
आज के नारी की कहानी हूँ मैं ।

1 comment:

  1. बेहद उम्दा गज़ल लिखी है...बेहतरीन

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