Friday, September 27, 2019




क्षणिकाएं
पोशाक
1)
अजर अमर आत्मा
बदलती रहती
नित नई पोशाक ,
पोशाक कभी वो
शीघ्र क्यों बदलती!
2)
एक पोशाक
दुखों के छिद्र से भरी हुई
अवसाद से छिद्र बढ़ते हुए
पैबंद लगाने बैठे छिद्रों
पर सुखों का ,
विश्वास के धागों से
सपने टांके,
लगन की सुनहरी जरी से
पोशाक बड़ी खूबसूरत नजर आई ।
3)
पोशाक पर
ऊँगली उठती बार बार
बच्चियों की पोशाक
बता दे कोई ।
4)
वर्दी बड़े सम्मान का विषय
कितनों की कुर्बानी 
वर्दी की आन शान में ,
एक मेडल और सजा था
 वर्दी पर
उसके जाने के बाद ।
5)
आज दुकान पर भीड़ बड़ी
पोशाक सिलवाने आये सभी,
सोचा सबकी एक सी सिल दूँ
इतनी शक्ति देना प्रभू!
सबकी पोशाक  में
धरा की हरियाली
केसरिया शक्ति दे दूँ
श्वेत हिमकणों की शीतलता से
प्रेम का रंग लाल भर दूँ ।
©anita_sudhir

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 28 सितंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर आभार आ0 रचना को स्थान देने के लिए

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  3. क्या खूब कहा है । वाह !

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