Friday, September 27, 2019

स्वेद/पसीना
**
खेतों में
धूप के समंदर में
पसीने का दरिया
बहाता किसान!
पसीना नहीं ,लहू बहता है
तब किसान आधा पेट खा कर
दूसरों का पेट भरता है ।

सड़कों पर
पसीने के आगोश में
बोझे को गले लगाता मजदूर !
अपने लहू से सींच
दूजे का महल
खुद सड़क किनारे सो जाता है।

सीमा पर
जवान धूप में
खड़ा अपना फर्ज  निभाता !
अपनों की चिंता किये बिना
हमारी रक्षा में शहीद हो जाता है ।

घर में
पिता जीवन भर
परिवार के लिये
खून  पसीना बहाता !
स्वयं कम में गुजारा कर
अपना जीवन होम कर जाता ।

पसीने की स्याही
से लिखता जो
अपने जीवन के कोरे पन्ने!
 वो खून के आँसू नहीं
खुशियों के अश्कों से
जिंदगी भिगोया करता है।

5 comments:

  1. वाह सार्थक सृजन

    ReplyDelete
  2. जी सादर अभिवादन आ0

    ReplyDelete
  3. पसीने का महत्वपूर्ण विश्लेषण करती रचना ... अच्छा है ...

    ReplyDelete
  4. आपके प्रोत्साहन के लिऐ सादर अभिवादन

    ReplyDelete

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...