Thursday, September 19, 2019

वृद्धावस्था
***
नींव रहे ,ये सम्मानित बुजुर्ग
मजबूत हैं इनके  बनाये दुर्ग
छत्रछाया में जिनके पल रहा
सुरक्षित आज का नवीन युग।
परिवर्तनशील जगत में
खंडहर होती इमारतें
और उम्र के इस पड़ाव में ..
निस्तेज पुतलियां,भूलती बातें
पोपला  मुख ,आँखो में नीर
झलकती व्यथा ,अब करती सवाल है ...
मेरे होने का औचित्य क्या ..
क्या मैं जिंदा हूँ ....
तब स्पर्श की अनुभूति से
अपनों का साथ पाकर
दादा जी,  जो जिंदा है बस
वो थके जीवन में  फिर जी उठेंगे ....
वृद्धावस्था अंतिम सीढ़ी  सफर  की
समझें ये पीढ़ी  जतन से
" जब जीर्ण शीर्ण काया मे
क्लान्त शिथिल हो जाये मन
तब अस्ति से नास्ति
का जीवन  बड़ा कठिन ।
अस्थि मज्जा की काया में
सांसो का जब तक डेरा है
तब तक  जग में अस्ति है
फिर छूटा ये रैन बसेरा है ।"
जो बोया  काटोगे वही
मनन   करें  ,सम्मान  दे इन्हें
पाया जो प्यार  इनसे , शतांश भी लौटा सके इन्हें
ये तृप्त हो लेंगे.. ये फिर जी उठेंगें ...

अनिता सुधीर

10 comments:

  1. अनीता जी बहुत अच्छी कविता है। बुजुर्गो का दर्द सब कहाँ महसूस कर पाते हैं।
    आप बहुत अच्छा लिख रही है बहुत अच्छी रचनाएँ हैं ब्लॉग पर।
    एक सुझाव है कृपया ब्लॉग फॉलोअर गैजेट लगाइये..जिससे हम आपका ब्लॉग फॉलो करें और आपकी लिखी नयी रचनाओं की जानकारी हमें मिल सके।
    सादर।

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  2. आ0 आप का हार्दिक आभार ,
    अभी नया ब्लॉग बनाया है ,तो इसकी बारीकी समझ नही पा रहें,कृपया बताएं कैसे लगाएं

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    1. जी अनीता जी,आप अपने ब्लॉग का ले-आउट पेज खोलिये उसमें दाहिने साइड में गैजेट बार होगा उसमें मिलेगा ब्लॉग फॉलोअर गैजेट।
      आप परेशान न हो सब हो जायेगा धीरे-धीरे।
      ब्लॉग से संबंधित कोई भी परेशानी हो आप मुझे मेरे मेल पर पूछ सकती हैं।

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  3. जी सादर आभार
    ब्लॉग फॉलोअर गैजेट तो नही दिख रहा ,लेकिन कुछ किया है ,देखिये ठीक है

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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    Replies
    1. आपका बहुत बहुत आभार

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  5. मृमस्पर्शी सार्थक रचना गहन चिंतन देती ।
    अप्रतिम सखी।

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