Sunday, September 22, 2019

पेंडुलम
**
अपने ही घर में
अपनों के बीच
अपनी ही स्थिति
से द्वंद करते
अपने मनोभावों में
इधर उधर विचरती
पेंडुलम की तरह
मर्यादा की रस्सी से बंधी
दीवार पर लटकी रहतीं
ये स्त्रियां ......
समाज की वर्जनाओं के
नित नए आयाम छूती
दो विपरीत ध्रुवों में
मध्यस्थता कर अपने
विचारों को दफन करती,
एक भाव की उच्चतम
स्थिति पर पहुँच
गतिशून्य विचारशून्य
हो दूसरी दिशा के
उच्चतम शिखर पर
चल पड़तीं
ये स्त्रियां.....
अपने ही घर में
अपने वजूद को सिद्ध करती
अपने होने का एहसास दिलाती
भावों से भरे मन के
बावजूद निर्वात अनुभव
करते पूरी जिंदगी
पेंडुलम की  तरह
कल्पनाओं में
इधर उधर डोलती
रहती  हैं
ये स्त्रियां......
©anita_sudhir

No comments:

Post a Comment

संसद

मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...