मंथन
मुक्तक
मंथन का ये विष मुझे अब पीना होगा
बिन अमरत्व की चाह अब जीना होगा,
तुम गलत कभी हो सकते हो,भला
मुझे ही अपने होठों को अब सीना होगा ।
साइबर अपराध आल्हा छंद दुष्ट प्रवृत्तियां दुष्कर्मों से,करें मनुज का नित नुकसान। जिसकी फितरत ही ओछी हो,लाभ कहां दे तब विज्ञान।। इंटरनेट कंप्...
सादर आभार आ0
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