Monday, September 23, 2019

बेटी

तितली के रंगीन परों सी
जीवन में सारे रंग भरे
चंचलता उसकी आँखों में
चपलता उसकी बातों मे
थिरक थिरक कर  चलती थी
सरगम सी बहती रहती थी
पावों में पायलिया की खनखन
जल तरंग सी छिड़ती थी
घर की रौनक ,सांसो की डोरी
आँगन में चिड़िया सी चहकती थी
सुबह के सूरज की किरणों जैसी
चपल मुग्ध बयार सी बहती थी।
वक़्त का कहर ऐसा टूटा
हैवानियत ने उसे ऐसे लूटा
उसका सामान मिला झाड़ियों में
तन को उसके लहूलुहान किया
जख्मी उसकी रूह हो गयी
हिरनी सी चपलता उसकी
दरिंदगी की भेंट चढ़ गई
हर आहट से डर वो
घर के कोने में दुबक गई
घर जो गूंजता था उसकी
मासूम शैतानियों से,
मरघट सा सन्नाटा फैल गया।
कुछ क्यों हैवान हो रहे
क्यों जिस्म को नोच रहे
क्या उनके घर में बेटियाँ नहीँ
इन मासूम कलियों को खिलने दो
इतना  भी नीचे मत गिरो
इनकी चपलता चंचलता रहने दो
घुट कर जीने को मजबूर न करो
मासूमों को सर उठा जीने दो ।
©anita_sudhir

9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 24 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुन्दर भाव अभिव्यक्ति

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  3. बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन सखी ।

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  4. जब तक बेटियां पुरुषों से जीने का हक मांगेगी तब तक इस हवसी जानवर की सोच नहीं बदलने वाली।
    उम्दा।

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  5. बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन....।

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  6. जी सही कहा
    सादर अभिवादन

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