Tuesday, September 24, 2019

दर्पण  को आईना दिखाने का प्रयास किया है

    दर्पण
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दर्पण, तू लोगों को
आईना दिखाता है
बड़ा अभिमान है  तुम्हें
अपने  पर ,कि
तू  सच दिखाता है।
आज तुम्हे  दर्पण,
दर्पण दिखाते हैं!
क्या अस्तित्व तुम्हारा टूट
बिखर नहीं जाएगा
जब तू उजाले का संग
 नहीं पाएगा
माना तू माध्यम आत्मदर्शन का
पर आत्मबोध तू कैसे करा पाएगा
बिंब जो दिखाता है
वह आभासी और पीछे बनाता है
दायें  को बायें
करना तेरी फितरत है
और फिर तू इतराता  है
 कि तू सच बताता है ।
माना तुम हमारे बड़े काम के ,
समतल हो या वक्र लिए
पर प्रकाश पुंज के बिना
तेरा कोई अस्तित्व नहीं ।
दर्पण को दर्पण दिखलाना
मन्तव्य  नहीं,
लक्ष्य है
आत्मशक्ति के प्रकाशपुंज
से  गंतव्य तक जाना ।

5 comments:

  1. आ0 आभार
    मेरे वहाँ कमेंट पब्लिश नहीं हो रहे ।

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  2. सुंदर लिखा है ।शुभकामना...

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  3. सार्थक सृजन सही सही वाद विवाद ।
    सुंदर अभिव्यक्ति।

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