कुंडलियां
*गजरा**
गजरा ले लो आप ये ,सुनते थे आवाज।
रुके वहाँ कुछ सोच के,छोड़े सारे काज ।।
छोड़े सारे काज,दिखी थी कोमल कन्या ।
मुख मलिन वसन हीन,कहाँ थी इसकी जन्या।।
मन में उठती पीर....करें ये जीवन उजरा।
लेकर आया मोल ,.....उन्हीं हाथों से गजरा।।
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*कंगन **
असली कंगन पहन के ,महिला करती सैर ।
वहाँ लुटेरे मिल गये ....कंगन की नहि खैर ।।
कंगन की नहि खैर ,सभी देखते तमाशा ।
छीना झपटी मार,नहीं स्त्री छोड़ी आशा ।।
निकले मुख से बोल,लिये जाओ !वो नकली।
बनवा लूँगी चार ,बचाये कंगन असली ।।
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अति सुन्दर कुण्डलियां 👌👌👌😊🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कुण्डलियाँ
ReplyDeleteवाह!!!
जे सादर अभिवादन
Deleteनमस्ते.....
ReplyDeleteआप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की ये रचना लिंक की गयी है......
दिनांक 27 मार्च 2022 को.......
पांच लिंकों का आनंद पर....
आप भी अवश्य पधारें....
सुन्दर
ReplyDeleteनकली वाली बात सही है ।
ReplyDeleteसुंदर सृजन ।