कुंडलिया
1) डोली
डोली बेटी की सजी,खुशियां मिली अपार।
सपने आंखों में लिये ,छोड़ चली घर द्वार।।
छोड़ चली घर द्वार ,जग की ये रीति न्यारी।
दो कुल की है लाज ,सदा खुश रहना प्यारी ।।
देते सब आशीष , सुख से भरी हो झोली ।
दृग के भीगे कोर ,उठे जब तेरी डोली।।
2)बिंदी
बिंदी माथे पर सजा ,कर सोलह श्रृंगार ।
पिया तुम्हारी राह ये ,अखियां रही निहार ।।
अखियां रही निहार,तनिक भी चैन न मिलता।
कैसे कटती रात ,विरह में तन ये जलता।।
बढ़ती मन की पीर ,छेड़ती है जब ननदी ।
तुम जीवन आधार ,तुम्हीं से मेरी बिंदी।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
सुंदर ,भावपूर्ण रचना ,सादर नमन
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार
Deleteजी सादर आभार
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteयह बिंदी स्त्रियोंं का श्रृंगार है अथवा उनकी पीड़ा, मैं ठीक से समझ नहीं पाता ?
ReplyDeleteबस भावनाओं से भरी ऐसी रचनाओं को पढ़कर कुछ अनुमान लगाने का प्रयास करता हूँँ।
श्रृंगार ही है आ0 ,
Deleteसादर आभार
बेहद खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteसादर
जी सादर अभिवादन
Delete