शिशिर ने दी दस्तक जब
बल पड़े हैं मस्तक पर
कोहरा चारों ओर फैला ऐसे
मानो निगलेगा सूरज को ।
गुनगुनी धूप को मन
अब तरसने लगे।
प्रातः का अद्भुत दृश्य
ओस बन मोतियां
बिखरी पत्तियों पर
रिमझिम फुहार बर्फ बन
मानो कोई गीत गुनगुनाती है
पानी की छुअन
रगों में सिहरन कराती है।
खेतों मे पीली चादर बिछी हुई
दिन छोटे,रातें लंबी हो जाएं ।
मक्के की रोटी,सरसों का साग
अब मन को भाने लगे।
रजाई से बाहर निकलने में
हाड़ कंपकपाने लगे,
तब
सोच ये मन दहल जाए
मौसम दिखा रहा तेवर
क्या होगा उनका जो हैं बेघर
प्रकृति की अद्भूत लीला है
देखो ये कैसी विडंबना है
कोई पहाड़ों पर घूमने जाये
कोई ठंड में जान गवाएं ।
अलाव,कंबल का करें इंतजाम
सब मिल गरीबों की
शीत भगाएं।
आओ शिशिर ऋतु को
मोहक बनायें।
बल पड़े हैं मस्तक पर
कोहरा चारों ओर फैला ऐसे
मानो निगलेगा सूरज को ।
गुनगुनी धूप को मन
अब तरसने लगे।
प्रातः का अद्भुत दृश्य
ओस बन मोतियां
बिखरी पत्तियों पर
रिमझिम फुहार बर्फ बन
मानो कोई गीत गुनगुनाती है
पानी की छुअन
रगों में सिहरन कराती है।
खेतों मे पीली चादर बिछी हुई
दिन छोटे,रातें लंबी हो जाएं ।
मक्के की रोटी,सरसों का साग
अब मन को भाने लगे।
रजाई से बाहर निकलने में
हाड़ कंपकपाने लगे,
तब
सोच ये मन दहल जाए
मौसम दिखा रहा तेवर
क्या होगा उनका जो हैं बेघर
प्रकृति की अद्भूत लीला है
देखो ये कैसी विडंबना है
कोई पहाड़ों पर घूमने जाये
कोई ठंड में जान गवाएं ।
अलाव,कंबल का करें इंतजाम
सब मिल गरीबों की
शीत भगाएं।
आओ शिशिर ऋतु को
मोहक बनायें।
बेहतरीन, लाजवाब
ReplyDeleteशिशिर ऋतु की भावपूर्ण व्याख्या👌👌
ReplyDeleteजी सादर आभार आ0
Deleteआ0 रचना को साझा करने के लिए सादर आभार
ReplyDeleteबेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार आपको
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन सखी! बहुत ही सुंदर।
ReplyDeleteसुंदर और सार्थक सृजन सखी।
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