Saturday, December 14, 2019

शिशिर ने दी दस्तक जब
बल पड़े हैं मस्तक पर
कोहरा चारों ओर फैला ऐसे
मानो निगलेगा  सूरज को ।
गुनगुनी धूप को मन
अब तरसने लगे।
प्रातः का अद्भुत दृश्य
ओस बन मोतियां
बिखरी  पत्तियों पर
रिमझिम फुहार बर्फ बन
मानो कोई गीत गुनगुनाती है
पानी की  छुअन
रगों में सिहरन कराती है।
खेतों मे पीली  चादर बिछी हुई
दिन छोटे,रातें लंबी हो जाएं ।
मक्के की रोटी,सरसों का साग
अब मन को भाने  लगे।
रजाई से बाहर निकलने में
हाड़  कंपकपाने लगे,
तब
सोच ये मन दहल जाए
मौसम दिखा रहा तेवर
क्या होगा उनका जो हैं बेघर
प्रकृति की अद्भूत लीला है
देखो ये कैसी विडंबना है
कोई पहाड़ों पर घूमने जाये
कोई ठंड में जान गवाएं ।
अलाव,कंबल का करें इंतजाम
सब मिल गरीबों की
शीत भगाएं।
आओ शिशिर ऋतु को
मोहक बनायें।

8 comments:

  1. बेहतरीन, लाजवाब

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  2. शिशिर ऋतु की भावपूर्ण व्याख्या👌👌

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  3. आ0 रचना को साझा करने के लिए सादर आभार

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  4. बेहतरीन रचना सखी

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  5. बहुत ही सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार आपको

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  6. बेहतरीन सृजन सखी! बहुत ही सुंदर।

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  7. सुंदर और सार्थक सृजन सखी।

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मैं संसद हूँ... "सत्यमेव जयते" धारण कर,लोकतंत्र की पूजाघर मैं.. संविधान की रक्षा करती,उन्नत भारत की दिनकर मैं.. ईंटो की मात्र इमार...