कोहरे के माध्यम से आज की समस्याओं और समाधान पर लिखने का प्रयास किया है
कई शब्द अपने मे गहन अर्थ समेटे है आप की प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
कोहरा
जब उष्णता में आये कमी
अवशोषित कर वो नमी
रगों में सिहरन का
एहसास दिलाये
दृश्यता का ह्रास कराता
सफर को कठिन बनाता है
कोहरा चारों ओर फैलता जाता है।
संयम से सजग हो
निकट धुंध के जाओ..
और भीतर तक जाओ
कोहरे ने सूरज नहीं निगला है
सूरज की उष्णता निगल
लेगी कोहरे को ।
सामाजिक ,राजनीतिक
परिदृश्य भी त्रास से
धुंधलाता जा रहा
रिश्तों की धरातल पर
स्वार्थ का कोहरा छा रहा
संबंधों की कम हो रही उष्णता
अविश्वास द्वेष की बढ़ रही आद्रता
कड़वाहट बन सिहरन दे रही
विश्वास ,प्रेम की किरणें
लिए अंदर जाते जाओ
दूर से देखने पर
सब धुंधला है
पास आते जाओगे
दृश्यता बढ़ती जायेगी
तस्वीर साफ नजर आएगी।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ....... ,.....4 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी सादर आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन अनीता जी ,सादर नमन
ReplyDeleteजी सादर आभार
Deleteसही कहा अविश्वास और द्वैष की आर्द्रता से उपजा कुहरा मन मे धुंधलापन फैलाए हुए है विश्वास और प्रेम से करीब होते जाओ जो जैसा था वैसा ही नजर आने लगेगा
ReplyDeleteगूढ़ अर्थ लिए लाजवाब सृजन
वाह!!!
आ0 आपकी प्रतिक्रिया से कविता सार्थक हो गयी ,हार्दिक आभार
Deleteबहुत बहुत शानदार
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद सखी
Deleteधन्यवाद सखी
Deleteबहुत सुंदर भाव प्रधान सृजन ।
ReplyDeleteजी सादर अभिवादन
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 5.12.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3560 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
जी आपका हार्दिक आभार
ReplyDeleteजी सही कहा #अनीता जी आपने बहुत ही गहरे अर्थ आपके इस कोहरे रचना में छुपी हुई है रिश्तो में कोहरा छाने लगा है समाज के दृष्टिकोण में कोहरा छाने लगा है जो इंसानी मानवीय मूल्य ..जिनकी कभी हम कद्र किया करते थे आज उन पर भी कोहरा छाने लगा है कोहरा सिर्फ धुंध का पर्याय नहीं है यह कोहरा सारे समाज को निगल रहा है..
ReplyDeleteबेहद अचंभित हूं अपनी इस पुरी प्रतिक्रिया को लेकर आपकी कमाल की रचना ने मुझे बहुत सारी बातें लिखने को मजबूर कर दिया ....."कोहरा चारों ओर फैलता जाता है।
संयम से सजग हो
निकट धुंध के जाओ..
और भीतर तक जाओ
कोहरे ने सूरज नहीं निगला है
सूरज की उष्णता निगल
लेगी कोहरे को ।
सामाजिक ,राजनीतिक
परिदृश्य भी त्रास से
धुंधलाता जा रहा
रिश्तों की धरातल पर
स्वार्थ का कोहरा छा रहा...!! बहुत बड़ी बात है कि जब आपके सामने एक बहुत ही उच्चतम क्वालिटी की कविता मौजूद हो जिनमें जीवन का सार छुपा हो उस वक्त हमें भी बहुत कुछ बोलने का मौका मिल जाता है और ऐसा ही कुछ अभी मैंने महसूस किया
यूं ही लिखती रहा कीजिए इस रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई
अनिता जी एक ही नामराशि का अभिवादन
ReplyDeleteआप की प्रशंसा और राचना की भाव को इतना गहराई से व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार
स्नेह बनाये रखें