दोहावली
भावों का व्यतिरेक है ,नहीं शिल्प का ज्ञान ।
छन्द सृजन संभव नहीं ,मैं मूरख अंजान।।
जीवन उपवन हो सजा,खिले पुष्प प्रत्येक।
घृणा द्वेष व्यतिरेक हो,प्रेम बहे अतिरेक ।।
मातु पिता आशीष से,मन हर्षित अतिरेक।
प्रभु चरणों में ध्यान हो,पूर्ण कार्य प्रत्येक।।
बंधन जन्मों का रहे ,निभे प्रणय की रीति।
निष्ठा अरु विश्वास ही ,सफल करे ये नीति।।
प्रणयन कर ये सम्पदा ,हिय में भरा हुलास ।
विद्वजन के सामीप्य में ,मिले ज्ञान का ग्रास।।
बहुत सुंदर सराहनीय दोहे��
ReplyDeleteजी सादर अभिवादन
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